A poem in Hindi, from my book Mahlon Ko Bikte Dekha Hai.
Category Archives: hindi poetry
किताब पढ़ने का सुख
दिग्भ्रम का जाल निकाल कर, सही और सच को तोलिये
राजनीतिक पार्टियों की हवा यूँ चली, मानवता सड़ते देख रहा हूँ।
अपने ही दोस्तों, हमवतनों को आपस में लड़ते देख रहा हूँ।
पार्टियों को सत्ता से मतलब है, यही उनकी शक्ति है,
ये आपको क्या हुआ है, ये किस तरह की भक्ति है।
उनके घर चलते रहेंगे, उनके चापलूस इलेक्शन लड़ते रहेंगे,
आप मनमुटाव में जीकर, बस उनका घर भरते रहेंगे।
ये किस तरह का बचपना है, ये हरकतें कितनी बचकानी है,
आज नेता आपका सबकुछ है, ये किस तरह की नादानी है।
जो सक्षम है, अमरिका, कनाडा, सिडनी में बस जाएंगे,
आप तालियां ही बजाएंगे? क्या मरते मारते रह जाएंगे?
जिन आंखों को मूंद लिया है, उन आँखों को खोलिये,
दिग्भ्रम का जाल निकाल कर, सही और सच को तोलिये।
— पीयूष कविराज
ज़िन्दगी ही तो है.. जी लेंगे
ज़िन्दगी ही तो है..
जी लेंगे
कभी पानी की तरह,
कभी ज़हर की तरह
कभी गुस्से के दो घूँट
कभी जाम के दो बूँद,
पी लेंगे.
ज़िन्दगी ही तो है..
जी लेंगे
© पीयूष कविराज
काश! तुम समझ पाते (Kaash Tum Samajh Paate)
कोयले का ढेर
A wonderful poem by Miss Upasana Singh.
Written in remembrance of those 372 people who lost their lives in the Chasnalla IIsco coal mine disaster in 1975 on this day … RIP
वो कालिख से भरी दिन वो काला सा कोयले का ढेर ,
कर गया था कितने सपनो को राख ,कितनो की किस्मत में उलट फेर ,
वो कोयला का ढेर अब घरों के चूल्हे जला नहीं बल्कि बुझा कर आया था,
उस वक्त ज़िन्दगी में बस कोयले सा ही कला साया था,
किसे पता था पानी जो जीवन देती है वो जीवन ही बहा ले जाएगी ,
उठते गिरते साँसों को एक साथ डुबो कर जाएगी,
खदानों में भरे पानी के साथ शायद लोगों का दिल भी भर आया था,
वो कोयले सा पत्थर पानी से ही सबकुछ जला आया था ,
आज बहुत सालों के बाद भी कोयले की राख जलती ही रहती है ,
उस काली स्याह रात की कालिख अब भी ज़ेहन से नहीं निकलती है .
© 2014 Upasana Singh
https://www.facebook.com/upasana.singh.9461/posts/10203281258934296?pnref=story