A poem in Hindi, from my book Mahlon Ko Bikte Dekha Hai.
Category Archives: Poetry
किताब पढ़ने का सुख
दिग्भ्रम का जाल निकाल कर, सही और सच को तोलिये
राजनीतिक पार्टियों की हवा यूँ चली, मानवता सड़ते देख रहा हूँ।
अपने ही दोस्तों, हमवतनों को आपस में लड़ते देख रहा हूँ।
पार्टियों को सत्ता से मतलब है, यही उनकी शक्ति है,
ये आपको क्या हुआ है, ये किस तरह की भक्ति है।
उनके घर चलते रहेंगे, उनके चापलूस इलेक्शन लड़ते रहेंगे,
आप मनमुटाव में जीकर, बस उनका घर भरते रहेंगे।
ये किस तरह का बचपना है, ये हरकतें कितनी बचकानी है,
आज नेता आपका सबकुछ है, ये किस तरह की नादानी है।
जो सक्षम है, अमरिका, कनाडा, सिडनी में बस जाएंगे,
आप तालियां ही बजाएंगे? क्या मरते मारते रह जाएंगे?
जिन आंखों को मूंद लिया है, उन आँखों को खोलिये,
दिग्भ्रम का जाल निकाल कर, सही और सच को तोलिये।
— पीयूष कविराज
काश तुम्हारे पास भी whatsapp होता!
कभी कभी बहुत अकेला हो जाता हूँ
तुम्हारे पास नहीं आ सकता न,
तुम्हारे गोद में सर रख कर रोने के लिए.
समझता ही नहीं, किससे बात करूँ..
काश तुम्हारे पास भी whatsapp होता!
कभी कभी चैट कर लेते, हम माँ-बेटे!!
Kabhi kabhi bahut akela ho jata hu.
Tumhare paas nahi aa sakta na,
Tumhare god me sir rakhkar rone ke liye.
Samjhta hi nahi kisse baat karu.
Kaash tumhare paas bhi whatsapp hota!
Kabhi kabhi chat kar lete hum ma-bete!
ज़िन्दगी ही तो है.. जी लेंगे
ज़िन्दगी ही तो है..
जी लेंगे
कभी पानी की तरह,
कभी ज़हर की तरह
कभी गुस्से के दो घूँट
कभी जाम के दो बूँद,
पी लेंगे.
ज़िन्दगी ही तो है..
जी लेंगे
© पीयूष कविराज
Summer Evenings on Flame
Summers are hot
This month of May.
The only respite are the evenings,
Set aflame, by the GulMohar, blossoming.
Note: Gulmohar is a tree, shown in the picture with red flowers.
Boiling milk and Me !
Three days
in a row,
I saw the milk boiling
and finally,
overflow..
Each time
I see it,
I cant resist
cursing milk,
The culprit,
I always know,
Even though….
https://www.facebook.com/permalink.php?story_fbid=1546869175565370&id=1391919817726974
Blood at Peshawar
I thought I have blood flowing in my veins…..
But blood is flowing out there,
From the veins of the children…..
And we grown ups…..
Can’t even pay a proper homage…..
And we say..
Blood flows through our veins…
Blood is flowing, out there,
On Streets….
Condemning Humanity!!
एक दिवाली ऐसी भी…
Beautifully written poem.. one can feel the divide created by means and money and the urge to bridge that divide after reading this poem. Good Job @AditiSahu7
एक दिवाली ऐसी भी…
मचल रही दिलों में सबके ख़ुशी की एक अजब लहर,
जगमगा उठा हर रास्ता, बूढ़े-बच्चे हुए रोशन चेहरे सभी
इसी सब के दौरान कुछ घरों में मचा है भूख का कहर,
दिवाली हो या ईद, दो-वक़्त की भी रोटी कहाँ नसीब होती कभी!
एक दिवाली ऐसी भी, एक दिवाली वैसी भी!
वो दिवाली के दिन नए-नवेले कपडे फबते कुछ बच्चों पर,
रोज़ पांच दिन तक पूजा, छुट्टी और नविन कपडे मनभाते बच्चों को ..
वहीँ बाज़ार में बेचते दिखी एक नन्ही बच्ची फलों से भरी टोकरी रख पर सर,
एक लाचार माँ मांगती दिखी भीक्षा, पास दिखे नग्न अवस्था में बच्चे दो!
एक दिवाली ऐसी भी, एक दिवाली वैसी भी!
वो हर घर रौशनी- दिये, आकाशदीप और सीरीज की चमकार,
लगे घर में रिश्तेदार, पड़ोसी और दोस्तों की कतार,
पर अभी भी कुछ कुलों में घुप्प अंधकार, कर पाएं आँगन रोशन
एक ही…
View original post 109 more words
Aao parosen kuch lamhe is khwabon ki tshtari me
आओ परोसें कुछ लम्हे, इस ख्वाबों की तश्तरी में!!
आज बड़े दिनों बाद ज़िन्दगी तुम मिली हो मुझसे
आओ करें कुछ गुफ्तगू
दोपहर की नरम धुप में बैठकर
बुने कुछ गलीचे रंगों से सराबोर
आओ परोसें कुछ लम्हे इस ख्वाबों की तश्तरी में
आओ आईने से झांकते अपने ही अक्स में
ढूंढें खुदको या फिर युहीं ख्वाहिशों की
सिलवटों में एक दूसरे को करें महसूस
या फिर याद करें उन भीगी रातों में
जुगनुओं का झिलमिलाना
आओ खोलें खिड़कियां मंन की
हों रूबरू खुदसे
पिरोएँ ख्वाहिशें गजरों में
भरें पींग, छूएं अम्बर को
आओ पूरे करें कुछ अधूरे गीत
छेड़ें कुछ नए तराने
आओ बिताएं कुछ पल साथ
देखें सूरज को पिघलते हुए
इस सुरमयी शाम के साये तले
आओ चुने स्याही में लिपटे सितारे
बनायें इस रात को एक नज़्म
आओ परोसें कुछ लम्हे इस ख्वाबों की तश्तरी में