A wonderful poem by Miss Upasana Singh.
Written in remembrance of those 372 people who lost their lives in the Chasnalla IIsco coal mine disaster in 1975 on this day … RIP
वो कालिख से भरी दिन वो काला सा कोयले का ढेर ,
कर गया था कितने सपनो को राख ,कितनो की किस्मत में उलट फेर ,
वो कोयला का ढेर अब घरों के चूल्हे जला नहीं बल्कि बुझा कर आया था,
उस वक्त ज़िन्दगी में बस कोयले सा ही कला साया था,
किसे पता था पानी जो जीवन देती है वो जीवन ही बहा ले जाएगी ,
उठते गिरते साँसों को एक साथ डुबो कर जाएगी,
खदानों में भरे पानी के साथ शायद लोगों का दिल भी भर आया था,
वो कोयले सा पत्थर पानी से ही सबकुछ जला आया था ,
आज बहुत सालों के बाद भी कोयले की राख जलती ही रहती है ,
उस काली स्याह रात की कालिख अब भी ज़ेहन से नहीं निकलती है .
© 2014 Upasana Singh
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