piyush kaviraj

feelings and musings…


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Naye Patte


Naye Patte

A poem in Hindi, from my book Mahlon Ko Bikte Dekha Hai.


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किताब पढ़ने का सुख


#किताब के पीले पन्ने पलटने का सुख;

बिस्तर पर लेटकर,

पढ़ते हुए नाक में आती खुशबू;

और पढ़ते पढ़ते सो जाना,

चश्मा लगाकर ही।

पिताजी किसी समय रात को

दोनों टेबल पर रख देते।

कहाँ वो सुख पीडीएफ़ में,

कहाँ वो मज़ा #किन्डल में!

worldBook Day


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दिग्भ्रम का जाल निकाल कर, सही और सच को तोलिये


राजनीतिक पार्टियों की हवा यूँ चली, मानवता सड़ते देख रहा हूँ।

अपने ही दोस्तों, हमवतनों को आपस में लड़ते देख रहा हूँ।

पार्टियों को सत्ता से मतलब है, यही उनकी शक्ति है,

ये आपको क्या हुआ है, ये किस तरह की भक्ति है।

 

उनके घर चलते रहेंगे, उनके चापलूस इलेक्शन लड़ते रहेंगे,

आप मनमुटाव में जीकर, बस उनका घर भरते रहेंगे।

ये किस तरह का बचपना है, ये हरकतें कितनी बचकानी है,

आज नेता आपका सबकुछ है, ये किस तरह की नादानी है।

 

जो सक्षम है, अमरिका, कनाडा, सिडनी में बस जाएंगे,

आप तालियां ही बजाएंगे? क्या मरते मारते रह जाएंगे?

जिन आंखों को मूंद लिया है, उन आँखों को खोलिये,

दिग्भ्रम का जाल निकाल कर, सही और सच को तोलिये।

— पीयूष कविराज


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काश तुम्हारे पास भी whatsapp होता!


कभी कभी बहुत अकेला हो जाता हूँ

तुम्हारे पास नहीं आ सकता न,

तुम्हारे गोद में सर रख कर रोने के लिए.

समझता ही नहीं, किससे बात करूँ..

काश तुम्हारे पास भी whatsapp होता!

कभी कभी चैट कर लेते, हम माँ-बेटे!!

 

Kabhi kabhi bahut akela ho jata hu.
Tumhare paas nahi aa sakta na,
Tumhare god me sir rakhkar rone ke liye.
Samjhta hi nahi kisse baat karu.
Kaash tumhare paas bhi whatsapp hota!
Kabhi kabhi chat kar lete hum ma-bete!


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ज़िन्दगी ही तो है.. जी लेंगे


ज़िन्दगी ही तो है..
जी लेंगे
कभी पानी की तरह,
कभी ज़हर की तरह
कभी गुस्से के दो घूँट
कभी जाम के दो बूँद,
पी लेंगे.

ज़िन्दगी ही तो है..
जी लेंगे
© पीयूष कविराज


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Summer Evenings on Flame


Summers are hot
This month of May.
The only respite are the evenings,
Set aflame, by the GulMohar, blossoming.

© piyushKAVIRAJ

campus

Note: Gulmohar is a tree, shown in the picture with red flowers.


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Boiling milk and Me !


Three days

in a row,

I saw the milk boiling

and finally,

overflow..

Each time

I see it,

I cant resist

cursing milk,

The culprit,

I always know,

Even though….

© piyushKAVIRAJ

https://www.facebook.com/permalink.php?story_fbid=1546869175565370&id=1391919817726974


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Blood at Peshawar


I thought I have blood flowing in my veins…..

But blood is flowing out there,

From the veins of the children…..

And we grown ups…..

Can’t even pay a proper homage…..

And we say..

Blood flows through our veins…

Blood is flowing, out there,

On Streets….

Condemning Humanity!!

© 2014 Piyush Kaviraj
The poem can also be found at https://campusdiaries.com/node/28785


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एक दिवाली ऐसी भी…


Beautifully written poem.. one can feel the divide created by means and money and the urge to bridge that divide after reading this poem. Good Job @AditiSahu7

Aditi's avatarAditi Sahu

Kar  dein roshan! Kar dein roshan!

एक दिवाली ऐसी भी…

मचल रही दिलों में सबके ख़ुशी की एक अजब लहर,
जगमगा उठा हर रास्ता, बूढ़े-बच्चे हुए रोशन चेहरे सभी
इसी सब के दौरान कुछ घरों में मचा है भूख का कहर,
दिवाली हो या ईद, दो-वक़्त की भी रोटी कहाँ नसीब होती कभी!

एक दिवाली ऐसी भी, एक दिवाली वैसी भी!

वो दिवाली के दिन नए-नवेले कपडे फबते कुछ बच्चों पर,
रोज़ पांच दिन तक पूजा, छुट्टी और नविन कपडे मनभाते बच्चों को ..
वहीँ बाज़ार में बेचते दिखी एक नन्ही बच्ची फलों से भरी टोकरी रख पर सर,
एक लाचार माँ मांगती दिखी भीक्षा, पास दिखे नग्न अवस्था में बच्चे दो!

एक दिवाली ऐसी भी, एक दिवाली वैसी भी!

वो हर घर रौशनी- दिये, आकाशदीप और सीरीज की चमकार,
लगे घर में रिश्तेदार, पड़ोसी और दोस्तों की कतार,
पर अभी भी कुछ कुलों में घुप्प अंधकार, कर पाएं आँगन रोशन
एक ही…

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Aao parosen kuch lamhe is khwabon ki tshtari me


आओ परोसें कुछ लम्हे, इस ख्वाबों की तश्तरी में!!

tikulicious's avatarSpinning a Yarn Of Life

आज बड़े दिनों बाद ज़िन्दगी तुम मिली हो मुझसे
आओ करें कुछ गुफ्तगू
दोपहर की नरम धुप में बैठकर
बुने कुछ गलीचे रंगों से सराबोर
आओ परोसें कुछ लम्हे इस ख्वाबों की तश्तरी में
आओ आईने से झांकते अपने ही अक्स में
ढूंढें खुदको या फिर युहीं ख्वाहिशों की
सिलवटों में एक दूसरे को करें महसूस
या फिर याद करें उन भीगी रातों में
जुगनुओं का झिलमिलाना
आओ खोलें खिड़कियां मंन की
हों रूबरू खुदसे
पिरोएँ ख्वाहिशें गजरों में
भरें पींग, छूएं अम्बर को
आओ पूरे करें कुछ अधूरे गीत
छेड़ें कुछ नए तराने
आओ बिताएं कुछ पल साथ
देखें सूरज को पिघलते हुए
इस सुरमयी शाम के साये तले
आओ चुने स्याही में लिपटे सितारे
बनायें इस रात को एक नज़्म
आओ परोसें कुछ लम्हे इस ख्वाबों की तश्तरी में

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