राजनीतिक पार्टियों की हवा यूँ चली, मानवता सड़ते देख रहा हूँ।
अपने ही दोस्तों, हमवतनों को आपस में लड़ते देख रहा हूँ।
पार्टियों को सत्ता से मतलब है, यही उनकी शक्ति है,
ये आपको क्या हुआ है, ये किस तरह की भक्ति है।
उनके घर चलते रहेंगे, उनके चापलूस इलेक्शन लड़ते रहेंगे,
आप मनमुटाव में जीकर, बस उनका घर भरते रहेंगे।
ये किस तरह का बचपना है, ये हरकतें कितनी बचकानी है,
आज नेता आपका सबकुछ है, ये किस तरह की नादानी है।
जो सक्षम है, अमरिका, कनाडा, सिडनी में बस जाएंगे,
आप तालियां ही बजाएंगे? क्या मरते मारते रह जाएंगे?
जिन आंखों को मूंद लिया है, उन आँखों को खोलिये,
दिग्भ्रम का जाल निकाल कर, सही और सच को तोलिये।
— पीयूष कविराज
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January 11, 2020 at 2:02 PM
Wah, bahut sahi
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