मौसम और फिजा,
दोनों में खुशहाली है.
पर्वतों पर झरने हैं,
पर खेतो में बदहाली है.
बसों में इतनी भीड़ है,
सड़कें भी सवाली हैं
मंडियों में सब्ज़ी है,
पर बटुए की तंगहाली है.
दिए तो हर घर में हैं,
पर कितनों की दिवाली है?
होंठों पर रंगीनियत है,
पर मन में सिर्फ गाली है!
अच्छे दिन के सपने हैं,
वो सुबह कब आने वाली है!!
-पीयूष कविराज