piyush kaviraj

feelings and musings…

क्या किरण और केजरीवाल में बहस होनी चाहिए ?

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क्या अरविंद और किरण में बहस होनी चाहिए। अगर दिल्ली जैसे साक्षर राज्य में बहस नहीं हो सकती तो कहां होगी। कब होगी। दोनों एक अलग गैर-राजनीतिक पृष्ठभूमि से आते हैं। दोनों आज की राजनीतिक प्रणाली के आलोचक रहे हैं। यह सही है कि दांव अरविंद का है तो किरण स्वीकार करने में हिचकेंगी, लेकिन राजनीति में यह कोई बड़ी बात नहीं है। किरण बेदी भी स्वीकार कर केजरीवाल को मात दे सकती हैं। अगर बहस होगी तो हम इस राजनीति को नए सिरे से देख सकेंगे। नेतृत्व की तार्कित और बौद्धिक क्षमता को परख सकेंगे। यह लोकतंत्र के लिए एक रोमांचक मौका होगा जिसे दिल्ली वालों को हाथ से नहीं जाने देना चाहिए। जब विधानसभा में आमने-सामने हो सकती हैं तो पहले क्यों नहीं हो सकती है।

फिर भी किरण बेदी का यह कहना कि बहस सिर्फ विधानसभा के भीतर होती है, सही नहीं है। लोकतंत्र में असली बहस जनता के बीच होती है। जनता के आमने-सामने होती है, एक दूसरे की तरफ पीठ करके चुनौती देने से ही लोकतंत्र महान नहीं हो जाता। आमने-सामने आकर उसका और विस्तार होता है। फिर भी बहस की चुनौती स्वीकार करना एक बड़ा रणनीतिक फैसला भी है। केजरीवाल ने भी किसी रणनीति के तहत ही चुनौती दी होगी। इसी बहाने आज टीवी और सोशल मीडिया का स्पेस उनके नाम हो सकता है। पर यह सच है कि हमारे देश में चुनाव टीवी और ट्वीटर में ढलता जा रहा है। सब कुछ टीवी के लिए हो रहा है। टीवी के लिए ही दिखने वाला चेहरा लाया जाता है, नहीं दिखने लायक चेहरा राजनीति में पचास साल लगाकर भी रातों रात गायब कर दिया जाता है। इस लिहाज़ से किरण बेदी के पास मना करने का कोई औचित्य नहीं है।
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For more details, click: http://naisadak.org/kya-kiran-aur-kejriwal-mein-bahas-honi-chahiye/

Author: piyushKAVIRAJ

Author of "Mahlon Ko Bikte Dekha Hai", Crumpled Voices 2, Jazbaati Galiyaan; Avid reader and writer, love for languages, especially Hindi. Aspiring socio-political activist. Poet and philanthrope!! Have been writing poetry since school days and trying to write better poems with every passing day. We owe so many things to the society and we can't get rid of our responsibility of returning the favour. Trying to contribute to society through writing and any other help possible, be it through guidance to students, cancer patients and their relatives or blood donors.

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